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October 25, 2025 2:42 PM

रासायनिक खेती को छोडकर प्राकृतिक खेती अपना रहे देश के लाखों किसान : देवव्रत

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16 सितम्बर को हरियाणा व गुजरात का मंत्रीमण्डल कृषि विशेषज्ञों की टीम के साथ करेगा गुरुकुल फार्म का दौरा

कुरुक्षेत्र, 13 सितम्बर । देश के लाखों किसानों ने रासायनिक खेती को छोड़कर जीवनदायनी प्राकृतिक कृषि को अपनाया है और अपनी आर्थिक स्थिति को सुधारने साथ-साथ जहर और कीटनाशक मुक्त प्राकृतिक फल, सब्जियों के उत्पादन से लोगों के स्वास्थ्य को सुधारने में भी मददगार साबित हो रहे हैं। उक्त शब्द आज गुरुकुल कुरुक्षेत्र के वातानुकूलित सभागार में पत्रकारों से बातचीत करते हुए गुरुकुल के संरक्षक एवं गुजरात के राज्यपाल आचार्य श्री देवव्रत ने कहे।

उन्होंने बताया कि गुजरात में पिछले 2 वर्ष के कार्यकाल के दौरान उन्होंने लगभग 2.5 लाख किसानों को प्राकृतिक खेती से जोड़ा है जबकि इससे पूर्व हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल रहते हुए उन्होंने 50 हजार किसानों को प्राकृतिक खेती हेतु प्रेरित किया था जिनकी वर्तमान में संख्या 2 लाख से अधिक है। उन्होंने कहा कि ये वे किसान है जो रासायनिक और जैविक खेती को छोड़कर अब प्राकृतिक खेती कर रहे हैं और बहुत कम खर्च में भरपूर उत्पादन ले रहे हैं।

इस अवसर पर ओएसडी टू गर्वनर डाॅ. राजेन्द्र विद्यालंकार, गुरुकुल के प्रधान राजकुमार गर्ग, उप प्रधान मास्टर सतपाल काम्बोज, अधिष्ठाता राधाकृष्ण आर्य, व्यवस्थापक रामनिवास आर्य सहित प्राकृतिक कृषि के स्टेट एडवाइजर डाॅ. हरिओम भी मौजूद रहे।
पत्रकारवार्ता में राज्यपाल आचार्य देवव्रत जी ने बताया कि गुरुकुल के प्राकृतिक कृषि फार्म की प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से प्रशंसा सुनकर आगामी 16 सितम्बर को गुजरात और हरियाणा के मुख्यमंत्री, कृषिमंत्री, शिक्षामंत्री, कृषि विश्वविद्यालयांे के कुलपतियों सहित कृषि वैज्ञानिकों की पूरी टीम गुरुकुल कुरुक्षेत्र के भ्रमण हेतु आएगी।

वहीं 15 सितम्बर को केन्द्रीय मंत्री कैलाश चैधरी, आईसीआर सेक्रेटरी डाॅ. हिमान्शु पाठक, कृषि अनुसंधान भवन के डिप्टी डीजी डाॅ. आनन्द कुमार, क्राॅप साइंस के डीप्टी डीजी डा. तिलकराज शर्मा, फिशरीज् साइंस की डिप्टी डीजी डाॅ. जाॅयकृष्णा जेना, एनीमल साइंस के डिप्टी डीजी डाॅ. भूपेन्द्रनाथ, एग्री. एजु. के डिप्टी डीजी डाॅ. आर. सी. अग्रवाल, आईसीएआर करनाल के डायरेक्टर डाॅ. एम.एस. चैहान सहित अन्य कृषि वैज्ञानिक गुरुकुल के फार्म का दौरा करेंगे और प्राकृतिक कृषि के विभिन्न पहलुओं को जानेगें।

आचार्य देवव्रत ने कहा कि प्राकृतिक खेती वर्तमान समय की जरूरत भी है और किसानी से जुड़ी हर समस्या का समाधान भी। उन्होंने कहा कि कई किसानों को भ्रम है कि यदि वे रासायनिक या जैविक खेती को छोड़कर प्राकृतिक खेती करेंगे तो उनका उत्पादन घटेगा जबकि सच्चाई से बिल्कुल विपरीत है। प्राकृतिक खेती में पहले ही साल से पूरा उत्पादन मिलता है, जो आगे घटता नहीं बल्कि बढ़ता ही जाता है, यह हर लिहाज से किसानों के लिए लाभकारी है। एक बार फिर उन्होंने पत्रकारों को जैविक और प्राकृतिक खेती के बीच के अन्तर को समझाया।

उन्होंने कहा कि कई लोग जैविक और प्राकृतिक खेती को एक ही प्रकार की खेती मानते हैं जो बिल्कुल गलत है बल्कि जैविक खेती तो रासायनिक खेती से भी महंगी है जिसे आम किसान कर ही नहीं सकता और न ही इससे किसानों को कोई लाभ है। यही कारण है कि पिछले 30 वर्षों में देश में जैविक कृषि का एक भी माॅडल सामने नहीं आया। श्रीलंका का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि वहां पर लोग जैविक खेती ही कर रहे थे और इसके लिए किसानों को कोई ट्रेनिंग भी नहीं दी गई थी, दूसरी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि वहां पर्याप्त संख्या में पशुधन भी नहीं था, ऐसे में वहां भयावह स्थिति उत्पन्न हुई।

उन्होंने कहा कि प्राकृतिक खेती से कम लागत में अधिक उत्पादन से किसान खुशहाल होगा। पानी की बचत से भूमिगत जल स्तर में सुधार, जमीन की उर्वरा शक्ति में वृद्धि होगी। पर्यावरण और लोगों का स्वास्थ्य सुधरेगा और देशी गाय फिर से लोगों के घरों में बंधेगी।

कृषि वैज्ञानिक डाॅ. हरिओम ने भूमि की उपजाऊ क्षमता पर प्रकाश डालते हुए बताया कि देश में अधिकांश इलाकों में भूमि का ऑर्गेनिक काॅर्बन 0.3, 0.4 से भी नीचे जा चुका है, जिसे वैज्ञानिक भाषा में बंजर भूमि कहते हैं और भूमि की इस हालत की जिम्मेदार सीधे तौर पर रासायनिक खेती है क्योंकि किसानों ने यूरिया, डीएपी, कीटनाशक खेतों में डालकर मित्रजीवों को खत्म कर दिया, मित्रजीवों के न रहने के कारण भूमि बंजर हो गई है। इसे अब केवल प्राकृतिक खेती से ही उपजाऊ बनाया जा सकता है और इसका प्रमाण गुरुकुल कुरुक्षेत्र का 50 एकड़ का खेत है जहां पर चार वर्ष पहले ऑर्गेनिक कार्बन 0.34 था और जीवामृत व घनजीवामृत के प्रयोग से अब यह 1.0 से भी ऊपर पहुंच चुका है।

धान की फसल में तेला रोग किसानों के लिए बड़ी समस्या है जिसका रासायनिक खेती में कोई समाधान नहीं है मगर प्राकृतिक खेती में यह रोग आता ही नहीं क्योंकि खेत में मित्रजीव इस रोग के कीटाणु को पनपने ही नहीं देते। इसके अलावा धान में 50 प्रतिशत पानी की बचत और 30 प्रतिशत पैदावार अधिक होती है।

Jarnail
Author: Jarnail

Jarnail Singh 9138203233 editor.gajabharyananews@gmail.com

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