–सत्यवान ‘सौरभ’
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मंत्र प्यार का फूँकते, दिल में रखते घात ।
रिश्ते क्या बेकार है, करना उन से बात ।।
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कहाँ मनों में भावना, कहाँ दिलों में प्यार ।
रिश्ते ढूंढें फायदे, मानो कारोबार ।।
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हाथ मिलाते गैर से, अपनों से बेज़ार ।
‘सौरभ’ रिश्ते हो गए, गिरगिट से मक्कार ।।
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छोटी-मोटी बात को, कभी न देती तूल ।
हर रिश्ते को मानती, बेटी करे न भूल ।।
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भाई-चारा प्रेम हित, रिश्ते हैं बीमार ।
दु:ख-सुख की बातें गई, गया मनों से प्यार ।।
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सील गए रिश्ते सभी, बिना प्यार की धूप ।।
धुंध बैर की छा रही, करती ओझल रूप ।।
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सुख की गहरी छाँव में, रिश्ते रहते मौन ।
वक्त करे है फैसला, कब किसका है कौन ।।
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लेकर पैसे गाँठ में, कहता खुद को धन्य ।
सोचो कितने खो दिए, रिश्ते यहाँ अनन्य ।।
(सत्यवान ‘सौरभ’ के चर्चित दोहा संग्रह ‘तितली है खामोश’ से। )

— सत्यवान ‘सौरभ’,
रिसर्च स्कॉलर, कवि,स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार, आकाशवाणी एवं टीवी पेनालिस्ट,
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Author: Jarnail
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