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July 4, 2025 1:42 PM

शिरोमणि सतगुरु रविदास महाराज जी (12 फरवरी विशेष)

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बेगमपुरा सहर को नाउं, दुख अंदोह नहीं तिहि ठाउं।

बेगमपुरा जगह का सपना देखने वाले संत गुरु रविदास का जन्म विक्रमी संवत् 1433 यानी सन् 1376 में माघ शुक्ल पूर्णिमा को रविवार के दिन माना जाता है।

चौदह सौ तैंतीस की, माघ सुदी पंदरास।
दुखियों के कल्यान हित, प्रगटे श्री रविदास।।

उनकी मृत्यु विक्रमी संवत् 1584 यानी सन् 1527 में हुई-

पन्द्रह सौ चउरासी, भई चितौर मुंह भीर।
जर-जर देह कंचन भई, रवि रवि मिल्यौ सरीर।।

गुरु रविदास महान विचारक और समाज सुधारक थे। उनका व्यक्तित्व सांप्रदायिक सद्भाव का प्रतीक है। उन्होंने अपनी बानियों के माध्यम से सामाजिक क्रांति का अभियान चलाया। इस क्रांति ने ऊंच और नीच, हिंदू और मुसलमान, गरीब और अमीर, राजा और प्रजा, शिक्षित और अशिक्षित के बीच की खाई को कम किया। इसका प्रभाव सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक और आर्थिक क्षेत्र में देखा जा सकता है।

सतगुरु रविदास सामाजिक बराबरी की बात करते हैं तथा मानवता का उपदेश देते हुए कहते हैं कि सभी मनुष्य एक समान हैं। उनको एक ही परमात्मा ने बनाया है।

एकै माटी के सब भांडे, सबका एको सिरजन हारा।
रविदास व्यापै एको घट भीतर, सबको एकै घडै कुम्हारा।।

समाज के कुछ स्वार्थी लोगों ने अपने वर्चस्व को स्थापित करने के लिए मनुष्य मनुष्य में भेद करने के लिए ही जाति और धर्म का चक्कर चलाया तथा मानवता की हत्या की है।

जनम जाता मत पूछिए, का जाति करूं पात।
रविदास पूत सब प्रभु के, की नहीं जाता कुंजाम।।

सतगुरु रविदास जी ने बार-बार अपनी बानियो में अपनी जाति का जिक्र किया है। वे अपनी जाति की महानता बताने के लिए यह सब नहीं करते बल्कि यह ज़िक्र तो केवल यह बताने के लिए किया है कि कोई भी व्यक्ति जाति से ऊंचा या नीचा नहीं होता बल्कि उसके कर्म ही उसे ऊंचा या नीचा बनाते हैं। इन बानियों के माध्यम से वे समाज द्वारा पीछे धकेले व्यक्तियों को मुख्य धारा में लाने हेतु प्रयास करते हैं। शोषण के विरुद्ध संघर्ष करके ही उन्होंने भारत में सर्वप्रथम समाजवाद का नारा बुलंद किया-
रविदास जनम के कारणै होता न कोए नीच।
नर को नीच करि डारि है, ओछे कर्म की कीच।।

गुरु रविदास का मानना है कि मनुष्य और परमात्मा के बीच किसी प्रकार का जातीय बंधन नहीं आना चाहिए। उनका मानना है कि परमात्मा की भक्ति करना किसी जाति विशेष के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता बल्कि परमात्मा तो प्रत्येक प्राणी के हृदय में बसे हुए हैं। प्रत्येक जाति का व्यक्ति परमात्मा का सुमिरन कर सकता है।

जाति पांति पूछे नहीं कोई, हरि को भजे सो हरि का होई।

गुरु रविदास मानते हैं कि रोटी कपड़ा और मकान जैसी मूलभूत आवश्यकता प्रत्येक व्यक्ति का जन्मसिद्ध अधिकार है तथा प्रत्येक राष्ट्र के कर्ता-धर्ता को सर्वप्रथम इन्हें पूरा करना चाहिए। वे ऐसे राज्य की कल्पना करते हैं जहां कोई व्यक्ति भूखा ना हो।

ऐसा चाहूं राज मैं, जहां मिलै सबन को अन्न।
छोट बड़ो सब सम बसै, रविदास रहे प्रसन्न।।

संतों ने अपनी बानियो में बहुजन हिताय बहुजन सुखाय की बात की है। अनेक प्रकार के धार्मिक राजनीतिक एवं सांस्कृतिक संक्रमण काल में भी गुरु रविदास रचनारत्त रहे। उनके साहित्य में तत्कालीन समस्याओं, कर्मकांडों, पाखंडों का वर्णन तो है ही, उस समय प्रचलित विविध तत्व निरूपक ग्रन्थों व साधना पद्धतियों का भी वर्णन है। अनन्य साधना का संदेश देकर संत रैदास ने तत्कालीन दुखी व पीड़ित अज्ञान से घिरी जनता के सामने एक मंगलकारी विकल्प रखा। उनके व्यक्तित्व और वाणी के सत्य ने जनता को प्रभावित किया। जीवन के प्रति उनका सकारात्मक दृष्टिकोण रहा है तथा उसी सकारात्मकता के सिरे को पकड़कर समाज से भेदभाव समाप्त करने की अलख जगाने में सफल रहे।

गुरु रविदास कहते हैं कि व्यक्ति के कर्म के आधार पर उसका समाज में मान-सम्मान होना चाहिए ना की जाति के आधार पर। व्यक्ति का कर्म ही उसे ऊंचा और नीचा बनता है। उनके अनुसार ओछा कर्म है स्वयं के बारे में ही सोचना, इससे भी बढ़कर ओछा कर्म है दूसरे के अधिकारों का अतिक्रमण करना, उन्हें ज्ञान प्राप्त करने से वंचित रखना, उनके सम्मान के साथ खिलवाड़ करना, घरों में आगजनी करना, लूटपाट करना, हत्याएं करना सब ओछे कर्म हैं।

काम-क्रोध मद लोभ तजि, करत धरम का कार।
सोई ब्राह्मण जानहि, कहिए रविदास विचार।।

दीन दुखी के हेत जो वारे अपने प्रान।
रविदास उस नर सूर को सच्चा क्षत्री मान।।

सांची हाटी पैठकर सौदा सांचा देय।
तकरी तोल सांच की रविदास वैस है सोय।।

रविदास जो अति पतित है, सोई सूदा जान।
जउ कुकरमी असुधजन तिन्हहि न सुदा मान।।

गुरु रविदास ने सामाजिक भेदभाव को मिटाने के लिए अथक प्रयास किया। विशेष कर ऊंच नीच की भावना के कारण सामाजिक सम्मान और साधना की दिशा में जो बाधाएं थी उनके खिलाफ उन्होंने अपनी तरह से प्रयास जारी रखे। गुरु रविदास ने जनमानस को प्रेम की सुगम राह दिखाई। उनका यही व्यक्तित्व उन्हें सामान्य जन से अलग करता है। उनका यही व्यक्तित्व प्रेम और विनम्रता को महत्व देता है। कुकर्म और सुकर्म के अनुसार ही जाति का निर्धारण होना चाहिए। सेवा, भक्ति, प्रेम, विनम्रता, सदाचरण, सद्भाव, अहिंसा ये सभी सुकर्म हैं। सद्कर्म से नीचा समझा जाने वाला भी ऊंचा हो जाता है तथा दुष्कर्म से ऊंचा समझा जाने वाला भी नीचा हो जाता है।

रविदास सुकरमन करने सौं नीच ऊंच हो जाय।
कर्म कुकर्म ऊंच भी तो महानीच कहलाय।।

गुरु रविदास को जिस गोविंद ने नीच से ऊंच बनाया वह निर्गुण है। सगुण के कारण तो उन्हें जातीय दंश झेलना पड़ा क्योंकि सगुण को पूजने के लिए निम्न जाति के लिए मंदिर के द्वार बंद थे। लोग सगुणोपासक होकर जात-पात के फेर में अधिक पड़ गए। उनके लिए मानव पूजा से भी बड़ी मूर्ति पूजा हो गई। ऊंच-नीच की खाई निरंतर बढ़ती गई। जब मनुष्य मनुष्य में ही भेद बना रहेगा तो जाति समाप्त कैसे हो सकती है? मनुष्य में स्वयं की जाति को बड़ी दिखाने की प्रतियोगिता लगी रहती है तथा वे जाति में से जाति निकालने की कोशिश में लगे रहते हैं।

जात जात में जात है, ज्यों केलन के पात।
रविदास मानुष ना जुड़ सके,जब लग जात ना जात।।

सभी मनुष्यों में एक ही परमात्मा का वास है परमात्मा जब जाति या धर्म नहीं देखता तो मनुष्य को किसने अधिकार दिया कि वह मानव को जातियों में विभाजित करे?

सभमहि एकु रामह जोति, सभी कुं एकह सिरजन हारा।
रविदास रामहि माहि, ब्राह्मण हुई के चमारा।।

वर्ग विशेष के जिन लोगों ने परमात्मा का ठेका ले रखा है उनसे गुरु रविदास पूछते हैं कि यह तो बताओ राम कहां है? कौन है राम? जिस राम की सब पूजा करते हैं वह तो राम नहीं है। जो सत्य है,वहीं राम है। गुरु रविदास के राम दशरथ के पुत्र राम नहीं हैं। उनकी स्पष्टोक्ति है-

रविदास हमारा राम जी दशरथ करि सुत नाहिं।

इसलिए उसे मंदिरों में, धार्मिक स्थानों पर ढूंढना व्यर्थ है। वह तो सभी के हृदय में समाया हुआ है। उसे अपने ह्रदय में ही खोजा जाए, वह वहीं पर रहता है।

का मथुरा का द्वारका,का काशी हरिद्वार।
रविदास खोजा दिल आपना, तो मिलिया दीदार।।

गुरु रविदास लोक कल्याण में विश्वास रखते थे। तात्कालीन शोषण, पीड़ा, दुख उन्हें व्यथित करता था। उनकी बानियों में वही लोक कल्याण दिखाई देता है जो महात्मा बुद्ध के उपदेशों में दिखाई देता था। जिस जाति प्रथा को चुनौती देकर भगवान बुद्ध ने एक महान आंदोलन का श्री गणेश किया संतों ने उसे चरम सीमा तक पहुंचाया (उत्तरी भारत के सांस्कृतिक विकास में संतों का योगदान पृष्ठ 99) । सही मायने में संत वही है जो दूसरों के दुख को समझता है तथा दूसरों के दुख में सहयोगी की तरह खड़ा रहता है। गुरु रविदास ने भी अपनी बानियों में इस बात का जिक्र किया है। गुरु रविदास के ये विचार महात्मा बुद्ध का स्मरण करवाते हैं।

रविदास सोई साधु भलो, जउ जानहिं पर पीर।
पर पीरा कूं पेखि के, रहने सदहि अधीर।।

गुरु रविदास ने फरमाया है कि व्यक्ति का सम्मान जाति के आधार पर ना होकर गुणों के आधार पर होना चाहिए।

रविदास ब्राह्मण मत पूजिए, जउ हौवै गुणहीन।
पूजिहिं चरण चंडाल के, जउ होवै गुण प्रवीन।।

संत रविदास ने अपनी बानियों के नूर से ना केवल जाति प्रथा को समाप्त करने की कोशिश की बल्कि धार्मिक एकता पर भी बल दिया। वे कहते हैं संपूर्ण मानव जाति का एक ही धर्म है और वह है मानवता। मानवता के अभाव में मनुष्य मनुष्य न रहकर पशु बन जाता है। सभी मनुष्यों में एक ही ईश्वर की ज्योति जलती है।

रविदास उपजई सब इक नूर ते, ब्राह्मन मुल्ला सेख।
सभ का करता एक है, सभ कूं एक ही पेख।।

मानव में धर्म या जाति के आधार पर नफरत की बजाय प्रेम की भावना होनी चाहिए। मानव को मानव से जोड़ने में गुरु रविदास का महत्वपूर्ण योगदान है। मनुष्य को मंदिर और मस्जिद को लेकर आपसी झगड़ा नहीं करना चाहिए। ईश्वर का विभाजन भी लोगों ने स्वार्थवश किया है और उसके नाम अलग-अलग रख दिए। गुरु रविदास फरमाते हैं कि ईश्वर तो हमारे मन में, हृदय में समाया हुआ है उसे मंदिर और मस्जिद में नहीं ढूंढना चाहिए क्योंकि इनका निर्माण भी लोगों ने स्वार्थवश ही किया है।

मंदिर मस्जिद दोउ एक है, इनमें अंतर नाहिं।
रविदास राम रहमान का, झगड़उ कोई नाहिं।
रविदास हमारो राम जोई, सोई है रहमान।
काबा कासी जानीयहि, दोउ एक समान।

सतगुरु रविदास जी वास्तव में जनता के गुरु हैं जिन्होंने अपनी सद्भावनापूर्ण और मानवतावादी बानियों द्वारा जनता के दिल में जगह बनाई और लोगों को वह पथ दिखलाया जो उन्हें प्रगति के पथ पर अग्रसर करता है। वे ऐसे समाज की कल्पना करते हैं जिसमें सभी को मान सम्मान मिले तथा दुख का जहां पर नामो निशां ना हो। जिस समाज में लोग आपसी भाईचारे और सद्भावना से रहें। उनकी बानियो में महात्मा बुद्ध के उपदेशों की झलक स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। सतगुरु ने संपूर्ण मानव जाति को एकता के सूत्र में पिरोने का कार्य किया। उन्हें हम कोटि-कोटि नमन करते हैं।

डॉ.स्नेहलता
प्राध्यापिका (हिंदी)
#1815 sec. 4
अर्बन इस्टेट,कुरुक्षेत्र
9416584018

Jarnail
Author: Jarnail

Jarnail Singh 9138203233 editor.gajabharyananews@gmail.com

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