शिरोमणि सतगुरु रविदास जी, जिन्हें गुरु रविदास, रैदास , रुहीदास, रुबी दास, संत रविदास के नाम से भी जाना जाता है, एक महान सतगुरु,कवि, समाज सुधारक और रहस्यवादी थे। उनका जन्म विक्रमी संवत 1433 (1377 ई.) को उत्तर प्रदेश के वाराणसी में हुआ था।

उनका जन्मस्थान सीर गोवर्धनपुर गांव में था, जो अब शिरोमणी सतगुरु रविदास जन्म स्थान मंदिर के रूप में रविदासिया धर्म के अनुयायियों के लिए एक प्रमुख तीर्थस्थल है। जिसे सोने में मंडवाया जा रहा है। सोने के कलश, सोने की पालकी, सोने का छत्र, सोने की जोत, सोने के दरवाजे जिन पर करीब 2 क्विंटल सोना मढ़ा गया है। हर वर्ष प्रकाश पर्व पर देश विदेश से लाखों श्रद्धालु यहां पहुंच कर प्रकाश पर्व मनाते हैं । 2026 में शिरोमणी सतगुरु रविदास महाराज जी का जन्मोत्सव 1 फरवरी दिन रविवार को विश्वभर में श्रद्धापूर्वक मनाया जाएगा।
सतगुरु रविदास जी का जीवन और शिक्षाएँ हमें सिखाती हैं कि सच्ची भक्ति और आध्यात्मिक ज्ञान जाति, धर्म और सामाजिक स्थिति की सीमाओं से परे हैं। उन्होंने उस समय के कठोर जाति-प्रथा और सामाजिक भेदभाव के विरुद्ध आवाज़ उठाई। उनका मानना था कि सभी मनुष्य ईश्वर की संतान हैं और जन्म से कोई श्रेष्ठ या नीच नहीं होता।

शिक्षाएँ और प्रमुख योगदान
शिरोमणि सतगुरु रविदास जी के विचारों ने भारतीय समाज पर गहरा प्रभाव डाला। उनकी शिक्षाएँ मुख्य रूप से एक ईश्वर में विश्वास और मानवता पर केंद्रित थीं। उन्होंने “मन चंगा तो कठौती में गंगा” जैसे लोकप्रिय दोहे के माध्यम से यह संदेश दिया कि मन की पवित्रता ही सबसे महत्वपूर्ण है, और बाहरी अनुष्ठान का कोई महत्व नहीं है।
डेरा स्वामी सरवनदास सचखंड बल्लां के गद्दीनशीन श्री 108 संत निरंजन दास जी और समूचे समाज के संतो की उपस्थिति में रविदासिया धर्म की स्थापना की, जो उनके सिद्धांतों और शिक्षाओं पर आधारित है। उनके अनुयायी, जिन्हें रविदासिया कहा जाता है, उनकी आध्यात्मिक विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं। उनके अनुयायियों में आद-धर्मी, रामदासिया सिख, चमार, जाटव, मोची व अन्य जाति जैसे विभिन्न समुदायों के लोग शामिल हैं।
कबीर जी के समकालीन होने के कारण, दोनों संतों के बीच आध्यात्मिकता पर कई संवाद हुए, जो भारतीय संत परंपरा में एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। गुरु रविदास जी की कुछ रचनाएँ सिख धर्म के पवित्र ग्रंथ गुरु ग्रंथ साहिब में भी संकलित हैं, जिनमें उनके 40 शब्द और 1 श्लोक शामिल हैं। इसे सिख धर्म में उनके उच्च स्थान और सम्मान का प्रमाण माना जाता है।

शिरोमणि सतगुरु रविदास जन्मदिवस: एक पावन पर्व
रविदास जयंती या प्रकाश पर्व, उनके जन्मदिन के उपलक्ष्य में, माघ महीने की पूर्णिमा को मनाया जाता है। यह दिन न केवल उनके अनुयायियों के लिए बल्कि उन सभी लोगों के लिए भी विशेष महत्व रखता है जो उनके विचारों का सम्मान करते हैं। इस दिन भक्त पवित्र नदियों और जलाशयों में स्नान करते हैं, मंदिरों में विशेष आरती और पूजा करते हैं, और उनके जन्मस्थान पर जाकर श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।
नगर कीर्तन का आयोजन किया जाता है, जिसमें उनके अनुयायी उनकी वेशभूषा धारण कर भक्तिमय गीत गाते हुए सड़कों पर नगर कीर्तन, शोभा यात्रा निकालते हैं। यह दिन हमें सतगुरु रविदास जी के जीवन और उनके संघर्षों से प्रेरणा लेने का अवसर प्रदान करता है, ताकि हम एक ऐसे समाज का निर्माण कर सकें जहाँ सभी को सम्मान मिले और कोई भेदभाव न हो।

मीरा बाई के गुरु
यह माना जाता है कि भक्ति आंदोलन की महान कवयित्री मीरा बाई ने भी शिरोमणी सतगुरु रविदास जी को अपना आध्यात्मिक गुरु माना था। मीरा बाई की भक्ति और समर्पण में सतगुरु रविदास जी की शिक्षाओं का प्रभाव स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है, जो उनके आध्यात्मिक मार्गदर्शन की गहराई को दर्शाता है।
शिरोमणि सतगुरु रविदास जी का जीवन एक प्रेरणा है कि कैसे एक व्यक्ति, चाहे वह किसी भी सामाजिक पृष्ठभूमि से हो, अपनी आध्यात्मिक शक्ति और दृढ़ संकल्प से समाज में सकारात्मक बदलाव ला सकता है। उनका संदेश आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना सदियों पहले था।

डॉ जरनैल सिंह रंगा
संपादक, गजब हरियाणा समाचार पत्र

Author: Jarnail
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