गोवर्धन असरानी, जिन्हें हम सब प्यार से असरानी कहते थे, भारतीय सिनेमा के सबसे प्रिय हास्य अभिनेता थे। उनके अभिनय में विनम्रता, सादगी और अद्भुत हास्य का संगम था। शोले के “अंग्रेज़ों के ज़माने के जेलर” से लेकर गोलमाल, बावर्ची और चुपके चुपके तक, उन्होंने हर किरदार में जीवन की सच्चाई दिखायी। युवा हों या वृद्ध, सभी उनकी हँसी और संवादों के दीवाने थे। सरल जीवन, निष्ठा और कला के प्रति समर्पण उनके व्यक्तित्व का मूल था। भारतीय सिनेमा उनका योगदान हमेशा याद रखेगा।
भारतीय चलचित्र जगत ने एक और प्रकाशपुंज खो दिया। हास्य अभिनय के महारथी, सरल स्वभाव के धनी और हर पीढ़ी को हँसाने वाले कलाकार गोवर्धन असरानी, जिन्हें संसार प्यार से केवल असरानी कहता था, अब इस नश्वर संसार से विदा ले चुके हैं। उनके निधन के साथ भारतीय सिनेमा का एक स्वर्णिम अध्याय समाप्त हो गया है। परन्तु उनकी मुस्कान, उनकी आवाज़ और उनका सहज अभिनय सदैव जीवित रहेगा।
असरानी का जीवन केवल अभिनय की कहानी नहीं था, बल्कि यह एक ऐसी यात्रा थी जिसमें परिश्रम, लगन, अनुशासन और कला के प्रति गहरा समर्पण समाहित था। वे उन विरल कलाकारों में से एक थे जिन्होंने दर्शकों को यह सिखाया कि हँसी केवल ठहाका नहीं होती, बल्कि जीवन की जटिलताओं को हल्का करने का साधन भी होती है। उनके अभिनय में हास्य की गंभीरता और संवेदना दोनों एक साथ दिखाई देती थीं।
असरानी का जन्म सन् १९४१ में जयपुर नगर में एक सिंधी परिवार में हुआ था। बचपन से ही वे अभिनय की ओर आकर्षित थे। उनके परिवार को यह स्वप्न नहीं था कि एक दिन उनका बेटा भारतीय चलचित्रों में एक प्रसिद्ध नाम बनेगा, परंतु असरानी के भीतर कला का दीप बचपन से ही प्रज्वलित था। विद्यालय के नाटकों में उन्होंने भाग लिया और वहीं से अभिनय का बीज अंकुरित हुआ। युवावस्था में उन्होंने पुणे स्थित भारतीय चलचित्र तथा दूरदर्शन संस्थान में प्रशिक्षण प्राप्त किया। उस संस्थान ने उन्हें न केवल अभिनय का अभ्यास सिखाया बल्कि कला के गहरे दर्शन से भी परिचित कराया। वहाँ से निकलने के बाद उन्होंने मुंबई नगर का रुख किया — वही नगर जिसने असंख्य स्वप्नदर्शियों को गले लगाया और असंख्य को असफलताओं की धूल में मिला दिया। परंतु असरानी उन लोगों में थे जो असफलताओं से टूटते नहीं बल्कि और मज़बूत होते हैं।
असरानी जी की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि वे हास्य को हल्केपन से नहीं, बल्कि गंभीरता से निभाते थे। उनका कहना था कि “लोगों को हँसाना सबसे कठिन कार्य है, क्योंकि उसमें सच्चाई छिपी होती है।” उन्होंने दर्शकों को यह महसूस कराया कि हँसी केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि जीवन के प्रति एक सकारात्मक दृष्टिकोण है। उनका हास्य कभी अशिष्ट नहीं हुआ। उनके संवादों में एक मर्यादा थी, एक विनम्रता थी। वे दर्शकों के चेहरों पर मुस्कान लाते थे, परंतु किसी की गरिमा को ठेस नहीं पहुँचाते थे। यही कारण है कि वे पीढ़ियों तक प्रिय बने रहे।
सन् १९७५ में जब शोले प्रदर्शित हुई, तो उसमें अनेक पात्रों ने इतिहास रचा — जय, वीरू, गब्बर सिंह, ठाकुर और इसी श्रेणी में था वह जेलर, जो हर बार अपनी अंग्रेज़ी मिश्रित हिंदी में दर्शकों को हँसा देता था। “हम अंग्रेज़ों के ज़माने के जेलर हैं…” यह संवाद आज भी भारतीय जनमानस में जीवित है। असरानी ने इस किरदार को केवल निभाया नहीं, बल्कि उसमें प्राण फूँक दिए। उनकी आँखों की चपलता, चेहरे के भाव, शरीर की भाषा — सब कुछ ऐसा था कि दर्शक हर बार उस दृश्य के आने पर मुस्कुरा उठते थे। इस एक भूमिका ने उन्हें अमर बना दिया, परंतु उन्होंने स्वयं को कभी इस एक छवि तक सीमित नहीं होने दिया।
असरानी का अभिनय केवल हास्य तक सीमित नहीं था। उन्होंने गंभीर भूमिकाएँ भी निभाईं। बावर्ची, अभिमान, चुपके चुपके, गोलमाल, नमक हराम, कुली नंबर एक, दिल है कि मानता नहीं, हेरा फेरी जैसी अनेक चलचित्रों में उन्होंने अपनी बहुमुखी प्रतिभा का परिचय दिया। वे ऐसे कलाकार थे जो किसी भी परिस्थिति में ढल जाते थे। निर्देशक उनके चेहरे को देखकर समझ जाते थे कि इस व्यक्ति में असीम संभावनाएँ छिपी हैं। उनकी आवाज़ में एक ऐसी मिठास थी जो दर्शकों के कानों में सीधे उतर जाती थी। उन्होंने मंच, दूरदर्शन और चलचित्र — तीनों माध्यमों पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।
असरानी के लिए अभिनय केवल जीविका नहीं, बल्कि एक साधना था। वे कहा करते थे, “कलाकार वह दर्पण है जिसमें समाज अपना चेहरा देखता है। अगर हँसी के ज़रिए मैं समाज की थकान दूर कर सकता हूँ, तो वही मेरा पुरस्कार है।” उनका यह दृष्टिकोण उन्हें सामान्य हास्य कलाकारों से ऊपर उठा देता था। वे हँसी के साथ विचार भी देते थे। उनकी प्रस्तुति कभी फूहड़ नहीं होती थी; उसमें मानवता का तत्व होता था।
असरानी जी का स्वभाव अत्यंत विनम्र था। उन्होंने अपने सह-अभिनेताओं के साथ हमेशा मित्रता का व्यवहार किया। चाहे राजेश खन्ना हों, अमिताभ बच्चन हों या धर्मेन्द्र — सभी ने उनके साथ कार्य करना आनंददायक बताया। वे सेट पर हल्के-फुल्के वातावरण का निर्माण करते थे। कठिन दृश्यों में भी वे वातावरण को सहज बना देते थे। उनके साथी कलाकार कहते हैं कि असरानी जी का हँसी-मज़ाक केवल मनोरंजन के लिए नहीं होता था, बल्कि वह तनाव को दूर करने का साधन होता था।
बहुत से लोग नहीं जानते कि असरानी ने केवल अभिनय ही नहीं किया, बल्कि निर्देशन और शिक्षण के क्षेत्र में भी योगदान दिया। उन्होंने नवोदित कलाकारों को अभिनय की बारीकियाँ सिखाईं। वे अक्सर कहा करते थे, “हास्य अभिनय केवल चेहरा बिगाड़ने या अजीब चाल चलने का नाम नहीं है; यह दिल की सच्चाई से उपजता है।” उन्होंने युवा कलाकारों को सिखाया कि कैमरे के सामने झूठ नहीं बोला जा सकता। दर्शक हर झूठ को पकड़ लेते हैं। इसलिए अभिनय का आधार ईमानदारी होना चाहिए।
असरानी जी का सबसे बड़ा पुरस्कार यही था कि वे हर उम्र के दर्शकों के प्रिय थे। बुज़ुर्ग उन्हें पुराने दौर की यादों से जोड़ते थे, युवा उन्हें हल्के-फुल्के हास्य के प्रतीक मानते थे, और बच्चे उन्हें अपने मजेदार अंकल के रूप में देखते थे। उनकी आवाज़ सुनते ही चेहरा मुस्कुरा उठता था। वे हर वर्ग के लिए आत्मीय थे।
अपने जीवन के अंतिम वर्षों में भी असरानी सक्रिय रहे। उन्होंने कई धारावाहिकों और नाटकों में भाग लिया। वे कहते थे कि “जब तक साँस है, अभिनय चलता रहेगा।” वे कभी भी प्रसिद्धि के पीछे नहीं भागे। उन्होंने सरल जीवन जिया, और यही सरलता उनकी सबसे बड़ी पहचान थी। उनका निधन ८४ वर्ष की आयु में हुआ, परंतु वे अंतिम दिनों तक सक्रिय रहे। वे न केवल अपने परिवार के लिए, बल्कि भारतीय चलचित्र जगत के लिए भी प्रेरणा बन गए।
असरानी का योगदान केवल अभिनय तक सीमित नहीं है। उन्होंने यह सिद्ध किया कि हँसी भी एक गंभीर कला है। उन्होंने दर्शकों को यह सिखाया कि हर परिस्थिति में मुस्कराना संभव है। उनकी विरासत आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणास्रोत है। हर वह कलाकार जो हास्य के क्षेत्र में कार्य करेगा, कहीं न कहीं असरानी से प्रेरणा लेगा। उनके संवाद, उनकी शैली, उनकी आत्मीयता — सब कुछ भारतीय सिनेमा की स्मृतियों में अमिट रहेंगे।
असरानी जी का जीवन यह सिखाता है कि किसी भी कार्य को अगर मन से किया जाए, तो वह कला बन जाता है। उन्होंने संघर्ष किया, असफलताएँ देखीं, परंतु कभी अपने लक्ष्य से विचलित नहीं हुए। वे यह भी मानते थे कि कला का उद्देश्य केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि समाज में आशा और सहानुभूति जगाना है। उनके जीवन से हमें यह सीख मिलती है कि विनम्रता, ईमानदारी और परिश्रम — यही किसी कलाकार की सच्ची पहचान हैं।
आज जब असरानी जी हमारे बीच नहीं हैं, तो ऐसा लगता है मानो भारतीय सिनेमा का एक प्रिय स्वर मौन हो गया हो। परंतु उनकी हँसी, उनका चेहरा और उनका अभिनय हमारे भीतर सदा जीवित रहेगा। वे जहाँ भी होंगे, शायद वहाँ भी अपनी विशिष्ट शैली में कह रहे होंगे — “आर्डर! आर्डर! अदालत की कार्यवाही स्थगित की जाती है!” उनकी आत्मा को शांति मिले। भारतवर्ष सदैव उनका आभारी रहेगा।
असरानी — एक नाम, एक मुस्कान, एक युग। सिनेमा की हँसी अब कुछ कम हो गई है, पर असरानी की यादें सदैव गूंजती रहेंगी।

डॉ० सत्यवान सौरभ,
कवि,स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार,आकाशवाणी एवं टीवी पेनालिस्ट,333,परी वाटिका,कौशल्या भवन,बड़वा(सिवानी) भिवानी,हरियाणा – 127045

Author: Jarnail
Jarnail Singh 9138203233 editor.gajabharyananews@gmail.com