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August 3, 2025 2:29 AM

” डॉ अंबेडकर की राष्ट्र को देन ” विषय पर हुई राष्ट्रीय संगोष्ठी

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डॉ अम्बेडकर दलितों के नेता नहीं, बल्कि एक महान राष्ट्र निर्माता: प्रो. वैध करतार सिंह

आंबेडकर को समझने के लिए उनके विचारों को गहराई से पढऩा जरूरी: कुलपति

कुरुक्षेत्र, डॉ जरनैल रंगा । डॉ भीमराव अंबेडकर वेल्फेयर कमेटी द्वारा डा. अंबेडकर की जयंती के उपलक्ष में अंबेडकर भवन में तीन दिवसीय कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है जिसमें दूसरे दिन डॉ अंबेडकर की राष्ट्र को देन विषय राष्ट्रीय संगोष्ठी हुई। श्री कृष्ण आयुष विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर वैद्य करतार सिंह धीमान ने मुख्य अतिथि व विशिष्ट अतिथि के तौर पर डॉ चांदराम जिलोवा डायरेक्टर डॉ अंबेडकर लॉ कॉलेज, डॉ महावीर रंगा प्रोफेसर केयूके ने शिरकत की। अध्यक्षता थानेसर नगर परिषद की चेयरमैन माफी ढांडा ने की। पूर्व आईएएस एवं अंबेडकर भवन के प्रधान डॉ राम भक्त लांगयान ने मंच संचालन किया और अतिथिगणों का स्वागत किया। एएमओ अंजली, एएमओ अनामिका पावरिया , डीजीएम मांगे राम सरोहा सहित छात्रों को सम्मानित किया। प्रो. डॉ बलबीर सिंह, प्रो. डॉ वेद प्रकाश, प्रो. डॉ महावीर सिंह, शेर सिंह ढांडा, डॉ सुभाष सैनी प्रोफेसर केयूके, लॉ के छात्र अमित ने भी अपने विचार व्यक्त किए।

प्रोफेसर वैद्य करतार सिंह धीमान ने संबोधित करते हुए कहा कि भारत रत्न डॉ. भीमराव आंबेडकर को समझने के लिए उनके विचारों को गहराई से पढऩा जरूरी है। केवल चुनिंदा विषयों या घटनाओं से उनके व्यक्तित्व और योगदान को पूरी तरह नहीं समझा जा सकता है। वे केवल दलितों के नेता नहीं, बल्कि एक महान राष्ट्र निर्माता, विचारक और संविधान निर्माता थे। उनके अनुसार जो लोग स्वतंत्रता संग्राम के बाद श्रेय लेने में आगे रहे, वे भी विचारधारा के स्तर पर बाबा साहब जितने दृढ़ और राष्ट्रभक्त नहीं थे। महिला सशक्तिकरण, सेना, स्वास्थ्य और परिवार नियोजन समेत ऐसा कोई क्षेत्र नहीं है,जिस पर बाबा साहब का चिंतन नहीं रहा हो।
बाबा साहब को केवल दलित नेता के रूप में नहीं, बल्कि उन्हें सीमित दायरे से बाहर लाकर एक समग्र राष्ट्रनायक के रूप में देखा जाना चाहिए। विश्व में शायद ही कोई संविधान होगा, जिसे डॉ. आंबेडकर द्वारा न पढ़ा गया हो। उनका ज्ञान और दृष्टिकोण उन्हें संविधान निर्माण का सर्वश्रेष्ठ नेतृत्वकर्ता बनाता है। धर्म परिवर्तन की चर्चा करते हुए कुलपति ने कहा कि सन 1956 में जब बाबा साहब ने बौद्ध धर्म स्वीकार किया, तब भी उन्होंने भारतीय राष्ट्रीयता को सर्वोपरि रखा। उन्होंने बौद्ध धर्म को इसलिए स्वीकार किया, क्योंकि यह हिन्दू धर्म की सकारात्मक शिक्षाओं को समेटे हुए था और राष्ट्रहित से जुड़ा था। अगर उस समय बाबा साहब ने राष्ट्र की एकता के विपरीत कोई निर्णय लिया होता, तो देश को और अधिक विघटन का सामना करना पड़ता।
इस मौके पर लखमी चंद रंगा, जिले सिंह सबरवाल, श्याम लाल, राजेश बीरवल, राजिन्द्र भट्टी, डॉ नरेंद्र, रामकरण, गुरप्रीत आदि मौजूद रहे।

बाबा साहेब के बारे में जितना हमने पढ़ा उसका 200 फीसदी हमने नहीं पढ़ा : डा. चांद राम जिलोवा

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डॉ चांदराम जिलोवा ने कहा कि बाबा साहेब के बारे में जितना हमने पढ़ा उसका 200 प्रतिशत हमने नहीं पढ़ा है। हमने बाबा साहब को एक दायरे के अंदर रख दिया कि उन्होंने संविधान की रचना की, और एक दलित छवि के रूप में ही उन्हें देखा जो कि उनके साथ एक अन्याय हुआ है। बाबा साहब ने लंदन स्कूलों ऑफ़ इकोनॉमिक्स से डीएससी की। उन्होंने कोलंबिया यूनिवर्सिटी से पीएचडी की जो की कोई आसान काम नहीं। उनका नजरिया राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इकोनॉमिक्स को लागू करना उसके कार्यान्वयन को और बेहतर बनाने की तरफ था जिसे की शुरू से ही भुला दिया गया। अगर बाबा साहेब के साथ सही मायने में न्याय होता तो आज इस देश की दशा और दिशा कुछ और होती, क्योंकि बाबा साहब ने इकोनॉमिक्स में जो काम किया उसका कभी इस देश ने फायदा उठाने की कोशिश ही नहीं की। उन्हें सिर्फ एक दायरे में रख दिया गया कि वे दलितों के नेता है, उन्होंने संविधान की रचना की है, और सामाजिक कल्याण में कार्य किए हैं । अमृत्य सेन जो की अर्थशास्त्र में नोबेल पुरस्कार विजेता है उन्होंने बाबा साहेब के बारे में एक लाइन लिखी अंबेडकर इज माय फादर इन इकोनॉमिक्स जो अर्थशास्त्री पूरे विश्व में जाना जाता है अगर वह बाबा साहेब के बारे में ऐसा कुछ कहता है तो यह बताना बाबा साहेब की पहचान के बारे में बहुत जरूरी है।

लोकतंत्र में डॉ बाबासाहेब आंबेडकर ने की धर्मनिरपेक्षता की स्थापना: डा. सुभाष सैनी

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डॉ सुभाष सैनी ने कहा कि यदि किसी देश में उसके शासन-प्रशासन, उसकी सामाजिक संस्थाओं में या उसके जितने भी सामाजिक संरचना है उनमें 80,-85 फीसदी जनता शामिल नहीं हो तो हम वहां किसी राष्ट्र की कल्पना नहीं कर सकते । बाबासाहेब ने इन 80-85 फीसदी जनता को उसमें शामिल करने के लिए रास्ते खोले। उससे ही भारत एक राष्ट्र बना है । यह डॉक्टर अंबेडकर की भारत को एक बहुत बड़ी देन है उन्हें लोगों के चेतन मन में यह विचार डाला कि यह राष्ट्र केवल कुछ चंद लोगों का, जो अपने आप को महान कहते हैं सिर्फ उनका नहीं है, बल्कि यह जो आबादी शताब्दियों से संघर्ष कर रहे है अगर वह इसमें शामिल नहीं है तो यह राष्ट्र कुछ समय के लिए ही हो सकता है, और ज्यादा समय तक नहीं चलने वाला है। लोकतंत्र में धर्मनिरपेक्षता की स्थापना डॉ बाबासाहेब आंबेडकर द्वारा की गयी। धर्मनिरपेक्षता के बिना लोकतंत्र व्यर्थ है धर्मनिरपेक्षता में बराबरी की बात कही जाती है लेकिन जब एक धर्म के लोगों को अधिक महत्व मिलेगा, तो धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र दोनों ही खत्म हो जाएंगे। अगर धर्मनिरपेक्षता व लोकतंत्र दोनों ही खत्म होते हैं तो ऐसे में आम जनता कहां जाएगी। इसके लिए समाज में न्याय स्थापित किया जाना बहुत जरूरी है।

Jarnail
Author: Jarnail

Jarnail Singh 9138203233 editor.gajabharyananews@gmail.com

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