Explore

Search
Close this search box.

Search

July 5, 2025 11:19 AM

मानवता को शर्मसार करती मानव तस्करी

WhatsApp
Facebook
Twitter
Email

मानवता को शर्मसार करती मानव तस्करी

मावनता को शर्मसार कर देने वाली मानव तस्करी सभ्य समाज के माथे पर बदनुमा दाग है, मानव तस्करी आधुनिक दुनिया में होने वाले सबसे विनाशकारी मानवाधिकार उल्लंघनों में से एक है। हर 30 सेकंड में एक व्यक्ति या बच्चे की तस्करी की जाती है, 3.8 मिलियन वयस्कों की तस्करी की जाती है और उन्हें यौन शोषण के लिए मजबूर किया जाता है, और हर साल दस लाख बच्चों को जबरन यौन शोषण के लिए तस्करी कर लाया जाता है, बंधुआ मज़दूरी भारत की सबसे बड़ी मानव तस्करी की समस्या है, जिसमें पुरुषों, महिलाओं और बच्चों को कर्ज़-बंधन, पिछली पीढिय़ों से विरासत में मिले ईंट-भट्टों, चावल मिलों और कारखानों में काम करने के लिये मजबूर होना पड़ता है।

 

मानव तस्करी में बल, धमकी या जबरदस्ती जैसे तरीकों का उपयोग करके व्यक्तियों को परिवहन करना, भर्ती करना, स्थानांतरित करना, आश्रय देना और प्राप्त करना शामिल है। इन कृत्यों और साधनों का अंतिम उद्देश्य इन व्यक्तियों का शोषण के उद्देश्य से उपयोग करना है। इन व्यक्तियों का शोषण वेश्यावृत्ति, अंग व्यापार, यौन शोषण, जबरन श्रम, दासता और दासता जैसे विभिन्न अत्यंत अपमानजनक रूप लेता है। जिन व्यक्तियों की तस्करी की जाती है उनमें सबसे अधिक संख्या महिलाओं और बच्चों की होती है जिनका उपयोग विभिन्न अनैतिक प्रकार के श्रम या यौन शोषण के लिए किया जाता है।

 

मानव तस्करी के मामले में भारत दुनिया के शीर्ष देशों में शामिल है और इसे मानव तस्करी का स्रोत, पारगमन और गंतव्य माना जाता है। किसी एक राज्य की सीमाओं के भीतर तथा अंतरराज्जीय मानव तस्करी के अलावा नेपाल और बांग्लादेश से अंतरराष्ट्रीय मानव तस्करी भी काफी लंबी खुली सीमा होने के कारण भारत में होती है। पश्चिम बंगाल मानव तस्करी का नया केंद्र बनकर उभरा है। भारत से पश्चिम एशिया, उत्तरी अमेरिका तथा यूरोपीय देशों में मानव तस्करी होती है। दुनियाभर में मानव तस्करी के पीड़ितों में एक-तिहाई बच्चे होते हैं।

 

एक अनुमान के अनुसार पिछले एक दशक में बांग्लादेश से लगभग 5 लाख महिलाएँ, लड़कियाँ और बच्चे अवैध रूप से भारत में लाए गए और यह संख्या साल-दर-साल बढ़ती ही जा रही है। यही कारण है कि पश्चिम बंगाल आज भारत का सबसे बड़ा सेक्स बाज़ार बनकर उभरा है और आँकड़े भी इस बात की गवाही देते हैं। देशभर के कोठों में देह व्यापार करने वाली जो लड़कियाँ रिहा कराई गईं, उनमें प्रति 10 लड़कियों में से 7 उत्तरी और दक्षिणी 24 परगना से लाई जाती हैं। इन लड़कियों में सबसे बड़ा डर पकड़े जाने का होता है, क्योंकि जब इन्हें रिहा कराकर घर वापस भेजा जाता है तो सामाजिक बदनामी से बचने के लिये परिवार वाले इन्हें स्वीकार करने से इनकार कर देते हैं।

पकड़े जाने से बचने के लिये इन लड़कियों के दलाल अपने रहने का ठिकाना और मोबाइल के सिम कार्ड लगातार बदलते रहते हैं। बांग्लादेश के साथ लगा बेनोपोल बॉर्डर मानव तस्करी के लिये दलालों द्वारा सर्वाधिक प्रयोग में लाया जाने वाला रास्ता है और बांग्लादेशी दलालों ने सीमावर्ती क्षेत्रों में अपने मज़बूत ठिकाने बना लिये है। बांग्लादेशी लड़कियों को आकर्षक रोज़गार, वेतन और सुविधाओं के अलावा विवाह तथा फिल्मों में काम करने का लालच देकर भारत लाया जाता है, जहाँ मुंबई, हैदराबाद और बंगलूरु इनके पसंदीदा ठिकाने माने जाते हैं।

 

तस्करी उन स्थानों पर पनपती है जहां व्यापक गरीबी है। माता-पिता अपने बच्चों को बेच देते हैं क्योंकि गरीबी के कारण उनके पास कोई अन्य विकल्प नहीं बचता है, वे अक्सर सोचते हैं कि अपने बच्चों को बेचने से वे उन जगहों पर चले जाएंगे जो बहुत बेहतर हैं और जहां उनके जीवन में सुधार होगा। समाज के सबसे कमजोर वर्गों में से एक, जो तस्करी के प्रति अधिक संवेदनशील है, युवा महिलाएं हैं, और ऐसा इसलिए है क्योंकि अधिकांश समाजों में सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से महिलाओं को अवमूल्यन और अवांछित माना जाता है और इस तरह वे तस्करी की प्रथा के प्रति अधिक संवेदनशील होती हैं।

 

उन जगहों से पलायन करने की इच्छा जहां उनका जीवन दयनीय है, व्यक्तियों को तस्करों से संपर्क करने के लिए तैयार करती है जो शुरुआती चरणों में उन्हें बेहतर जीवन के वादे के साथ लुभाते हैं, लेकिन एक बार जब पीड़ित उनके नियंत्रण में आ जाते हैं, तो उन्हें झुकाने के लिए जबरदस्ती के उपाय लागू किए जाते हैं। अन्य कारण हैं सीमाओं की छिद्रपूर्ण प्रकृति, भ्रष्ट सरकारी अधिकारी, अंतरराष्ट्रीय संगठित आपराधिक समूहों या नेटवर्क की भागीदारी और सीमाओं को नियंत्रित करने के लिए आव्रजन और कानून प्रवर्तन अधिकारियों की सीमित क्षमता या प्रतिबद्धता।

 

पिछले कुछ वर्षों में तस्करी का खतरा ड्रग सिंडिकेट के बराबर एक संगठित आपराधिक सिंडिकेट बन गया है। इसने पैसे और भ्रष्ट राजनेताओं की मदद से समाज में अपनी जड़ें गहरी जमा ली हैं। भारतीय कानूनी ढांचे में ठोस परिभाषाओं की कमी भी इस उद्देश्य में मदद नहीं करती है क्योंकि विभिन्न तस्कर कानूनी प्रणालियों में तकनीकी खामियों के आधार पर छूट जाते हैं। ठोस परिभाषाओं के बिना भी, कानून पर्याप्त होने चाहिए थे, लेकिन भारत में इन कानूनों के कार्यान्वयन में बहुत कुछ अधूरा रह गया है। सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर निगरानी की कमी ने तस्करों के लिए अपना व्यापार जारी रखने के लिए एक नया मंच खोल दिया है।

 

तस्करी की समस्या पर डेटा अपर्याप्त है, इसलिए तस्करों के पैटर्न और कार्य तंत्र उतने स्पष्ट नहीं हैं जितना होना चाहिए। यहां तक कि जब पीड़ितों को तस्करों से बरामद किया जाता है तो उनका पुनर्वास इस तरह से नहीं किया जाता है कि वे दोबारा तस्करी का शिकार न हों। मानव तस्करी का खतरा बहुत बड़ा है और न केवल ऐसे अपराधों को रोकने की जरूरत है बल्कि यह भी सुनिश्चित करने की जरूरत है कि राहत और पुनर्वास प्रक्रिया सुचारू रूप से हो। नीतियों में और सुधार करने की आवश्यकता है और विभिन्न एजेंसियों और हितधारकों द्वारा उचित कार्रवाई की जानी चाहिए। मानव तस्करी से सुरक्षा का अधिकार एक संवैधानिक अधिकार है।

 

देश के हर बच्चे, हर पुरुष और हर महिला को सम्मानजनक जीवन प्रदान करने के लिए इस अधिकार की रक्षा की जानी चाहिए। मानव तस्करी वर्तमान विश्व के सम्मुख उपस्थित कई बड़ी समस्याओं में से एक है। तमाम कोशिशों के बावजूद इसे रोक पाना संभव नहीं हो पा रहा है और न केवल अल्प-विकसित और विकासशील देश बल्कि विकसित राष्ट्र भी इस समस्या से अछूते नहीं है। मानव तस्करी भारत की भी प्रमुख समस्याओं में से एक है।

प्रियंका सौरभ
रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस,
कवयित्री, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार,
उब्बा भवन, आर्यनगर, हिसार (हरियाणा)-127045

Jarnail
Author: Jarnail

Jarnail Singh 9138203233 editor.gajabharyananews@gmail.com

Advertisement
लाइव क्रिकेट स्कोर