Explore

Search
Close this search box.

Search

May 3, 2025 12:22 am

लेटेस्ट न्यूज़

सहमा-सहमा आज

WhatsApp
Facebook
Twitter
Email

सहमा-सहमा आज

सास ससुर सेवा करे, बहुएँ करती राज।
बेटी सँग दामाद के, बसी मायके आज॥

कौन पूछता योग्यता, तिकड़म है आधार।
कौवे मोती चुन रहे, हंस हुये बेकार॥

परिवर्तन के दौर की, ये कैसी रफ़्तार।
गैरों को सिर पर रखें, अपने लगते भार॥

अंधे साक्षी हैं बनें, गूंगे करें बयान।
बहरे थामें न्याय की, ‘सौरभ’ आज कमान॥

कौवे में पूर्वज दिखे, पत्थर में भगवान।
इंसानो में क्यों यहाँ, दिखे नहीं इंसान॥

जब से पैसा हो गया, सम्बंधों की माप।
मन दर्जी करने लगा, बस खाली आलाप॥

दहेज़ आहुति हो गया, रस्में सब व्यापार।
धू-धू कर अब जल रहे, शादी के संस्कार॥

हारे इज़्ज़त आबरू, भीरु बुज़दिल लोग।
खोकर अपनी सभ्यता, प्रश्नचिन्ह पर लोग॥

अच्छे दिन आये नहीं, सहमा-सहमा आज।
‘सौरभ’ हुए पेट्रोल से, महंगे आलू-प्याज॥

गली-गली में मौत है, सड़क-सड़क बेहाल।
डर-डर के हम जी रहे, देख देश का हाल॥

लूट-खून दंगे कहीं, चोरी भ्रष्टाचार॥
ख़बरें ऐसी ला रहा, रोज़ सुबह अख़बार।

मंच हुए साहित्य के, गठजोड़ी सरकार।
सभी बाँटकर ले रहे, पुरस्कार हर बार॥

नई सदी में आ रहा, ये कैसा बदलाव।
संगी-साथी दे रहे, दिल को गहरे घाव॥

हम खतरे में जी रहे, बैठी सिर पर मौत।
बेवजह ही हम बने, इक-दूजे की सौत॥

जर्जर कश्ती हो गई, अंधे खेवनहार।
खतरे में ‘सौरभ’ दिखे, जाना सागर पार॥

थोड़ा-सा जो कद बढ़ा, भूल गए वह जात।
झुग्गी कहती महल से, तेरी क्या औक़ात॥

मन बातों को तरसता, समझे घर में कौन।
दामन थामे फ़ोन का, बैठे हैं सब मौन॥

हत्या-चोरी लूट से, कांपे रोज़ समाज।
रक्त रंगे अख़बार हम, देख रहे हैं आज॥

कहाँ बचे भगवान से, पंचायत के पंच।
झूठा निर्णय दे रहे, ‘सौरभ’ अब सरपंच॥

योगी भोगी हो गए, संत चले बाज़ार।
अबलायें मठलोक से, रह-रह करे पुकार॥

दफ्तर, थाने, कोर्ट सब, देते उनका साथ।
नियम-कायदे भूलकर, गर्म करे जो हाथ॥

—डॉ. सत्यवान ‘सौरभ’
तितली है खामोश (दोहा संग्रह)

-डॉ.सत्यवान सौरभ,
कवि,स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार,आकाशवाणी एवं टीवी पेनालिस्ट,333,परी वाटिका,कौशल्या भवन,बड़वा (सिवानी) भिवानी,हरियाणा – 127045

Jarnail
Author: Jarnail

Jarnail Singh 9138203233 [email protected]

Advertisement
लाइव क्रिकेट स्कोर