Explore

Search
Close this search box.

Search

July 5, 2025 12:21 PM

संत शिरोमणि सतगुरु रविदास जी जीवन परिचय

WhatsApp
Facebook
Twitter
Email

क्रांतिकारी, दुखियों,गरीब मजलूमों के दर्दी , कवि हृदय, रागों के धनी, गुरमुखी के रचियता, राजाओं के राजा महाराजा, जगतगुरु संत शिरोमणि सतगुरु रविदास जी प्रकाश पर्व 24 फरवरी 2024 को समूचे विश्व में श्रद्धा व हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है।

डेरा स्वामी सरवण दास सचखंड बल्लां जिला जालंधर से गद्दीनशीन श्री 108 संत निरंजन दास जी महाराज की अगुवाई में संत शिरोमणि सतगुरु रविदास जी के जन्मस्थान सीर गोवर्धनपुर वाराणसी में श्रद्धालु देश विदेश से लाखों की संख्या में पहुंच कर प्रकाश पर्व मनाते हैं। श्रद्धालु रंग बिरंगे पहनावे, विभिन्न भाषाओं में गुरु रविदास जी बाणी का टोलियों में गायन करते हुए सबका मन मोह लेते हैं। यह अजब नज़ारा देखते ही बनता है।

संत शिरोमणि सतगुरु रविदास जी को पंजाब में गुरु रविदास जी, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान में उन्हें रैदास के नाम से जाना जाता है। गुजरात और महाराष्ट्र के लोग रोहिदास और बंगाल के लोग उन्हें रुईदास कहते हैं। कईं पुराने पांडुलिपियों में उन्हें रायादास, रेदास , रेमदास, रौदास के नाम से भी जाना गया है। कहते हैं की माघ मास की पूर्णिमा को जब गुरु रविदास जी ने जन्म लिया वह रविवार का दिन था जिसके कारण इनका नाम रविदास रखा गया।
संत शिरोमणि सतगुरु रविदास जी महाराज का जन्म माघ पूर्णिमा की माघ सुदी पंद्रास 1433 विक्रमी संवत् सन् 1377 ई. को उत्तर प्रदेश के वाराणसी(कांशी) शहर के सीर गोवर्धनपुर गांव में हुआ था। पूजनीय पिताजी का नाम संतोष दास (रघु) था। उनकी माता जी का नाम पूजनीय कलसी देवी(कर्मा देवी) तथा उनके दादाजी का नाम पूजनीय कालूराम जी, दादी जी का नाम पूजनीय लखपति जी, पत्नी का नाम पूजनीय लोना देवी जी और पुत्र का नाम पूजनीय विजय दास जी है। गुरु रविदास जी चर्मकार होने के कारण वे जूते बनाने का व्यापार करते थे। वे पूरी लगन तथा परिश्रम से अपना कार्य करते थे। उनका जन्म ऐसे समय में हुआ जब उत्तर भारत के कुछ क्षेत्रों में मुगलों का शासन था। चारों ओर अत्याचार, गरीबी भ्रष्टाचार,अन्याय,पाखंड व अशिक्षा का बोलबाला था। गुरु रविदास जी महाराज अपने काम के साथ साथ प्रभु भक्ति में लीन रहते थे।
गुरु रविदास जी की ख्याति लगातार बढ़ रही थी। जिसके चलते उनके लाखों अनुयाई थे। जिसमे हर जाति के लोग शामिल थे। गुरु रविदास जी एक पहुंचे हुए प्रभु के प्यारे संत थे। उन्हें किसी धर्म विशेष से मतलब नहीं था। गुरु रविदास जी सबको इंसानियत और मानवता, एकता का पाठ पढ़ाते एक मानते थे।

गुरु जी अपनी अमृतबाणी में लिखते हैं। : –

मुसलमान सों दोसती हिंदुअन सों कर प्रीत।
रविदास जोति सभ राम की सभ हैं अपने मीत।। 143 ।।
रविदास उपजई इक नूर ते ब्राह्मन मुल्ला सेख।
सबको करता एक है सभ कुं एक ही पेख।। 154 ।।

गुरु रविदास जी बहुत ही दयालु और दानवीर थे। गुरु रविदास जी ने अपने दोहों व पदों के माध्यम से समाज में जातिगत भेदभाव को दूर कर सामाजिक एकता पर बल दिया और मानवतावादी मूल्य की नींव रखी।
यानी कोई भी व्यक्ति सिर्फ अपने कर्म से नीचे होता है जो व्यक्ति गलत काम करता है वह नीचे होता है कोई भी व्यक्ति जन्म के हिसाब से कमी नीचे नहीं होता संत रविदास जी ने अपनी बाणी के लिए जनसाधारण की गुरमुखी का प्रयोग किया। साथ ही इसमें अवधि, राजस्थानी, खड़ी बोली और रेख्ता यानी उर्दू फारसी के शब्दों का भी मिश्रण है। गुरु रविदास जी की बाणी के 40 शब्द और एक श्लोक सिख धर्म के पवित्र धर्मग्रंथ,गुरुग्रंथ साहिब में सम्मिलित किए गए है।

चारों वर्णों के जनेऊ दिखाना

संत शिरोमणि सतगुरु रविदास जी 15वीं शताब्दी के महान संतों में से एक हैं। इन्होंने समाज में जाति पाति और भेदभाव का विरोध किया और बताया कि सभी मनुष्य एक समान हैं। सभी मनुष्यों के शरीर में एक समान रक्त बहता है तो इनमें भेद किस बात का। इसी बात से समाज के कुलीन लोग इन्हें पसंद नहीं करते थे। उन्हें यह बात अच्छी नहीं लगती थी कि गुरु रविदास जो वर्ण व्यवस्था के अनुसार कुलीन नहीं थे लेकिन इनकी बराबरी की बात करते थे। गुरु रविदास के कुलीनों की तरह जनेऊ, तिलक लगाने से कुलीन लोग उनसे नाराज थे और बात राजा नागरमल तक पहुंच गई।
राज दरबार में गुरु रविदास जी को बुलाया गया। गुरु जी से पूछा गया कि वह जनेऊ क्यों धारण करते हैं। गुरु रविदास जी ने बहुत ही धैर्य और शांति से इसका जवाब देते हुए एक चमत्कार दिखाया। उन्होंने अपनी छाती पर एक चोट किया और वहां से चार जनेऊ सोने, चांदी, तांबे और सूत के निकाल कर दिखाया। इस चमत्कार को देखकर दरबार में मौजूद सभी लोग हैरान रह गए और गुरु रविदास का जय-जयकार करने लगे। राजा भी गुरु रविदास की सच्ची भक्ति से प्रभावित हुए और इन्हें कर्म से कुलीन बताया।
लेकिन इस घटना के बाद गुरु रविदास ने बताया कि जनेऊ और चंदन धारण करने से ऐसा नहीं है कि आपको भगवान मिल गए हैं। इसके बाद गुरु रविदास ने इन चारों जनेऊ को कंधे से उतार कर राजा के सामने रख दिया और इसके बाद इन्होंने कभी जनेऊ धारण नहीं किया। इस तरह गुरु रविदास ने बताया कि भक्ति के लिए और ईश्वर की प्राप्ति के लिए जरूरी नहीं कि आप जनेऊ और तिलक धारण करें। सच्ची भावना से आप ईश्वर को प्राप्त कर सकते हैं।

जातिवाद से लड़ने के उनके प्रयासों के कारण, गुरु रविदास को एक आध्यात्मिक व्यक्ति और एक समाज सुधारक दोनों के रूप में माना जाता है। संत कबीर साहेब गुरु रविदास जी महाराज के समकालीन थे जो समाज में फैली ऊंच नीच, छोटे बड़े, भेदभाव, धक्केशाही, अंध विश्वास , रूढ़ीवादी विचार धारा से लोगों को निजात दिलाने के लिए आपस में वार्तालाप करते थे।

पंडित शारदा नन्द के पुत्र को जीवित करना

बचपन में गुरु रविदास को पंडित शारदा नन्द पाठशाला में पढ़ने से रोका गया। उच्च जाति के लोगों द्वारा उन्हें वहां पढ़ने के लिए मना कर दिया गया। मगर उनके विचारों को देख पंडित शारदा नन्द को यह एहसास हुआ की गुरु रविदास बहुत ही प्रतिभाशाली हैं और उन्होंने पाठशाला में दाखिला दे दिया।
बचपन में गुरु रविदास अपने गुरू पंडित शारदा नन्द के पुत्र अच्छे मित्र बन गए थे। रोज दोनों लुकाछिपी खेलते थे। एक दिन उनका दोस्त खेलने नहीं आया। जब बहुत देर तक वह नहीं आया तो गुरु रविदास उनके घर गए। जब वे घर पहुंचे तो उन्हें पता चला की उनके मित्र की मृत्यु हो चुकी है। सभी शव को घेरकर मातम मना रहे हैं। तभी गुरु रविदास पंडित शारदा नन्द के पुत्र के शरीर के पास जाकर बोले–अभी सोने का समय नहीं है, चलो लुकाछिपी खेलें। उनके यह शब्द सुनकर मित्र जीवित हो उठा। ये दृश्य देखकर हर कोई हैरान रह गया।

 

गुरु रविदास जी के महत्वपूर्ण उपदेश :-

‘ रैदास जन्म के कारणै, होत न कोई नीच।
नर को नीच करि डारि हैं, औछे करम की कीच।।

मतलब- व्यक्ति पद या जन्म से बड़ा या छोटा नहीं होता है, वह अपने गुणों या कर्मों से महान या छोटा होता है।

• ‘जन्म जात मत पूछिए, का जात और पात।
रैदास पूत सम प्रभु के कोई नहिं जात-कुजात ।।

मतलब- वे समाज में वर्ण व्यवस्था के खिलाफ थे। उन्होंने कहा है कि सभी प्रभु की ही संतानें हैं, किसी की कोई जात नहीं है।

• गुरु रविदास जी ने बताया है कि सच्चे मन में ही प्रभु का वास होता है। जिनके मन में छल कपट होता है, उनके अंदर प्रभु का वास नहीं होता है। संत रैदास ने कहा है कि मन चंगा तो कठौती में गंगा।

• गुरु रविदास जी ने दुराचार, धोखेधड़ी से धन का संचय, अनैतिकता और मांसाहार को गलत बताया है। उन्होंने अंधविश्वास, भेदभाव, मानसिक संकीर्णता को समाज विरोधी बताया है।

• गुरु रविदास जी कर्म को प्रधानता देते थे। उनके अनुसार व्यक्ति को कर्म में विश्वास करना चाहिए। आप कर्म करेंगे, तभी आपको फल की प्राप्ति हो सकेगी। फल की चिंता से कोई कर्म न करें।
• गुरु रविदास जी के अनुसार व्यक्ति को अभिमान नहीं करना चाहिए। दूसरों को बिल्कुल भी तुच्छ न समझें। उनकी क्षमता जिस कार्य को करने की है, उसे आप नहीं कर सकते।

• वे अपने संदेशों में कहते हैं कि हम सभी यह सोचते हैं कि संसार सबकुछ है, मगर यह बिल्कुल सत्य नहीं है। परमात्मा ही सत्य है।

इस दिन मानते हैं रविदासिया समाज के लोग अपनी दीपावली

पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश सहित देश विदेश के सभी गुरुद्वारों, गुरु घरों(मंदिरों) को रंग बिरंगी रोशनी, लड़ियों, फूल मालाओं और चुनियों से सजाया जाता है और गुरु रविदास जी के सम्मान में विशेष अनुष्ठान, अमृतबाणी जाप , कीर्तन दरबार और प्रार्थनाएं की जाती हैं। गुरु रविदास जी के अनुयाई रात को अपने घरों में फूलों की सजावट, दीप माला,दीपक, लड़ियां, मोमबत्तियां जलाकर खुशियां मनाते हैं और दीपावली मनाते हैं।

जरनैल सिंह रंगा
संपादक

Jarnail
Author: Jarnail

Jarnail Singh 9138203233 editor.gajabharyananews@gmail.com

Advertisement
लाइव क्रिकेट स्कोर